- १९३५ में अखिल भारतीय स्तर पर स्थापित प्रवासी मारवाड़ियों की एकमात्र प्रतिनिधि संस्था |
- सदस्यता - राजस्थान, हरियाणा, मालवा एवं उनके निकटवर्ती भू-भागों के रहन सहन, भाषा एवं संस्कृति वाले सभी व्यक्ति जो स्वयं अथवा उनके पूर्वज देश या विदेश के किसी भाग में बसे हों - सम्मलेन के सदस्य हो सकते है |
- ब्रिटिश शासन द्वारा प्रवासी मारवाड़ियों को मतदान के अधिकार से वंचित किये जाने पर, संस्था की स्थापना हुई थी |
- इसके खिलाफ हुए आंदोलन से प्रवासी मारवाड़ियों को मिला था मतदान का अधिकार |
- बाद में सम्मलेन में सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ शुरू किया आंदोलन |
- दहेज़ प्रथा, घूँघट प्रथा का किया विरोध, विधवा विवाह, लड़कियों की उच्च शिक्षा के पक्ष में सामाजिक चेतना जगाई |
- ख़त्म हुई घूंघट प्रथा, होने लगे विधवा विवाह, लड़कियों को दी जाने लगी उच्च शिक्षा तथा दहेज़ प्रथा पर लगा अंकुश |
- समय परिवर्तन के साथ समाज में पनपी नै बुराइयों एवं कुरीतियों के खिलाफ शुरू की वैचारिक लड़ाई |
- समाज की सामाजिक सुरक्षा के तहत पूर्वोत्तर, ओडिशा सहित अन्य जगहों पर संगठित होकर किया आंदोलन, पाई सफलता |
समाज की सुरक्षा के लिए समाज के विरुद्ध दुराग्रह फ़ैलाने वालो के खिलाफ सशक्त एवं सामूहिक आवाज़ उठाना | दहेज़, दिखावा, प्रदर्शन, आडम्बर,
वधु उत्पीड़न, पर्दा प्रथा, वैवाहिक समारोह में मधपान एवं अन्य सामाजिक कुरीतियों का विरोध | महिला शिक्षा एवं नारी जागरण का समर्थन |
वैवाहिक परिचय सम्मलेन एवं सामूहिक विवाह का प्रसार | साहित्यिक एवं सांस्कृतिक विकाश, सामाजिक समरसता, उच्च शिक्षा, छात्रवृतियां एवं छात्रावास निर्माण |
प्राकृतिक आपदा एवं विपत्ति में राहत कार्यों का संचालन | विभिन्न सेवा प्रकल्पों का संचालन | राजनैतिक चेतना एवं भागीदारी व सामाजिक योगदान |
सर्व भारतीय स्तर पर १९८३ से सम्मलेन द्वारा महिलाओं के विकास एवं जागरण हेतु अखिल भारतीय मारवाड़ी महिला सम्मलेन की स्थापना | विभिन्न प्रांतों में प्रादेशिक महिला सम्मेलनों का गठन |